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उन्मुक्त

एक चिड़िया चली उड़ने आसमां के सपने, कोई ना अपने खुद से उड़ने एक चिड़िया चली उड़ने चलत चलत वो उड़त उड़त वो पहुँच गयी दूर देश सोन चिडियाँ, मोती बोली भाए सबको भेष दीवाना दुनिया को करने एक चिड़िया चली उड़ने देख के दुनिया इस चिड़िया को करने लगी अब कैद जाल बिछाए कई बहेलिया लुभावन देत अनेक भोली लगी फंसने एक चिड़िया चली उड़ने ऊँची पिंजरवा, नीचे दुनिया बहेलिया लगा उड़ने संग बहेलिया, बिन पंख के लगी चिड़िया उड़ने हो गया घमंड चिड़िया को खुदपर पर भूल गयी थी खुद के पर भ्रमित चिड़िया उड़ती रही सफल बहेलिया उड़ाता रहा सोची हो गए पुरे सपने एक चिड़िया चली उड़ने बेपंख चिड़िया को देखे कौन बाहर पिंजर के फ़ेंक के, बोला बहेलिया तू कौन? लगी, अब रोने एक चिड़िया चली उड़ने एक दिन नींद से जागी चिड़िया याद आया उसे अपना सपना करी जतन खुद से उड़ने की तोड़ लिये ख़ुद के पर ही अब खुद उन्मुक्त करने एक चिड़िया चली उड़ने वक़्त लगा खुद्दारी आई फिर अपनों की यारी आई सीख वो सीखी, दर्द वो भूली आए निकल नए पर चली उड़ान भरने एक चिड़िया चली उड़ने पहली उड़ान ये नई उड़ान आनंद दे ह्रदय को उसके और ऊँचे उड़ने की चाहत लगी